
यह ममता जी की साख और उनके प्रति सम्मान का भाव था कि उनके फ़ोन घुमाते ही स्वीकृतियों की झड़ी लग गयी। कुछ ने तो फ़ेसबुकिया सूचनाओं पर ही रचनाएँ रवाना कर दीं। उत्साह का आलम यह था कि कई लेखिकाओं ने तो थोक में रचनाएँ भेज दीं। अब यह काम सम्पादक का था कि वे ख़ज़ाने में से अपने काम का मोती छाँट लें।