हम देखेंगे हम चले थे जानिब-ए-मंज़िल…

हिन्दी लेखन में ‘वर्तमान साहित्य’ पत्रिका का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण घटना है। आज से चालीस वर्ष पूर्व 1983 में प्रसिद्ध कथाकार श्री विभूति नारायण राय ने इलाहाबाद से जब इसका प्रकाशन आरम्भ किया तो उस दौर में ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘दिनमान’ और ‘सारिका’ सरीखी पत्रिकाएँ बन्द होने के कगार पर थीं। पाठकों के बीच इस अभाव की पूर्ति का काम इसी पत्रिका ने किया था। फिर तो बाद में अन्य महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ मासिक तौर पर धीरे-धीरे आती गयीं और साहित्य की मासिक पत्रिकाओं का एक नया दौर शुरू हुआ। अब सब कुछ नये सिरे से नये अन्दाज़ में सामने था। साहित्य की ये मासिक पत्रिकाएँ आन्दोलन बन गयीं। ऐसे ही समय में ‘वर्तमान साहित्य’ ने भिन्न-भिन्न मुद्दों और विषयों पर विशेषांक निकाले। इसमें सर्वाधिक चर्चित 1991 का दो खण्डों में प्रकाशित ‘कहानी महाविशेषांक’ रहा जो रवीन्द्र कालिया के अतिथि सम्पादन में छपा। फिर 1992 में समकालीन कविता की प्रवृत्तियों की सही पहचान की दिशा में ‘कविता विशेषांक’ आया जिसके अतिथि सम्पादक राजेश जोशी थे। 1993 में ‘आलोचना विशेषांक’ डा.सत्य प्रकाश मिश्र के अतिथि सम्पादन में आया। इसके बाद 1994 में ‘महिला लेखन विशेषांक’ नासिरा शर्मा जी के अतिथि सम्पादन में आया। इसमें उषा प्रियंवदा, सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा आदि लेखिकाओं की कहानियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय रहीं।
बाद में असगर वज़ाहत, लीलाधर मंडलोई, अरविन्द त्रिपाठी, हरिश्चन्द्र अग्रवाल, अजीत पुष्कल, राम सिंह चहल, रामशंकर द्विवेदी, मृत्युंजय आदि के सम्पादन में ‘वर्तमान साहित्य’ के कहानी, कविता, नाटक, आलोचना, सिनेमा और प्रवासी लेखन आदि के विशेषांक आते गये। इस दौरान से.रा.यात्री, कुँवरपाल सिंह और नमिता सिंह के सम्पादन ने ‘वर्तमान साहित्य’ को बड़ी ही खूबसूरती से सँवारा और लघु पत्रिकाओं की दुनिया में ऐतिहासिक गौरव प्रदान किया। बाद में भारत भारद्वाजजी के सम्पादन में ‘दुर्लभ साहित्य विशेषांक’ आया जिसकी खूब चर्चा रही। इन सबके साथ ही अपने सामान्य अंकों की निरन्तरता में विगत चालीस वर्षों से ‘वर्तमान साहित्य’ की केन्द्रीय भूमिका रही है। अभी पिछले वर्ष ही गीतांजलि श्री पर एकाग्र आया और नवम्बर का विशिष्ट अंक ‘नवजागरणकालीन स्त्री कविता विशेषांक’ रहा जो अतिथि सम्पादक डा.सुजीत कुमार सिंह की गहन अन्वेषिता और अथक परिश्रम का प्रमाण रहा। वस्तुतः इस पत्रिका ने भारतीय समाज की संरचना और उसके यथार्थ से पाठकों को जोड़ने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है। शायद यही इसकी लोकप्रियता का आधार भी है।
मित्रो, इस समृद्ध विरासत को सँभाले हुए यह ‘समकालीन महिला लेखन महाविशेषांक’ सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालियाजी के अतिथि सम्पादन में अब आपके सामने है। बड़ी बात यह है कि बतौर अतिथि सम्पादक यह दायित्व निभाने के लिए आदरणीया ममताजी ने अपनी सहमति दी। पत्रिका परिवार ममताजी के प्रति कृतज्ञ है। महाविशेषांक के इस सिलसिले पर चर्चा करने के लिए संस्थापक सम्पादक श्री विभूति नारायण राय ने स्मृतियों के वातायन से अपनी बात बेहद सादगी और खूबसूरती से रखी है। विभूतिजी के हम आभारी हैं।
इस बीच हमारे बीच से विशिष्ट साहित्यकार सुरेश सलिल का जाना बहुत ही दुखद रहा। उन्हें ‘वर्तमान साहित्य’ परिवार की तरफ से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इन पर श्री भारत भारद्वाज द्वारा लिखा एक श्रद्धांजलि लेख हम अगले अंक में दे रहे हैं।
इस महाविशेषांक को अतिथि सम्पादक ममताजी ने पत्रिका के उप सम्पादक डा.शशि कुमार सिंह और सह सम्पादक डा.अलका प्रकाश के साथ पिछले तीन महीनों के अथक श्रम और मनोयोग से यह रूप दिया है। इस अंक को यह रूप देने में वन्दना शुक्ला के अतिरिक्त विशिष्ट सहयोगी श्री प्रणव प्रियदर्शी, सुधीर राघव, हरिगोविन्द विश्वकर्मा, हरिशंकर शाही, मयंक शुक्ला, विनीता शर्मा, वीरेन्द्र सिन्धु, इन्द्रजीत यादव, जगधारी बिन्द तथा मनीष कुमार मिश्रा का योगदान अप्रतिम है। पत्रिका की तरफ से इन साथियों के प्रति हम आभार व्यक्त करते हैं। अब यह महाविशेषांक आप तक पहुँच गया है। आशा है पाठक इसे अपनी आकांक्षा के अनुरूप पाएँगे।